मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा लेगा ,
यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा **************************************
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा
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गुलशन का इन्तज़ार अभी बाक़ी है॥
पतझङ चली गई
बहार अभी बाक़ी है॥
खेल चुके है इन्सान खून की होली ,
गिद्धोँ का त्योहार अभी बाक़ी है॥
फिर लुटने की तमन्ना है शायद,
लुटेरोँ पर ऐतबार अभी बाक़ी है॥
दिखा दिया तलवार का जौहर तुने,
मेरी क़लम का वार अभी बाक़ी है॥
बोएँ खूब लोग नफरत की फसल,
पर ,मेरे खेत मेँ प्यार अभी बाक़ी है॥
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सपनो में मेरे चुपके से आया है कोई..
धीमे से एक गीत गुनगुनाया है कोई..
मैंने तो आँखों को अपनी बंद रखा था..
फिर भी मेरे दिल में समाया है कोई..
लब पे मुस्कान है चेहरे पे ख़ुशी छाई है..
बन के खुशबू हर तरफ महकाया है कोई..
अब मुझे होता है जिन्दगी जीने का अहसास..
मेरे जीवन में बन के ख़ुशी छाया है कोई.
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खुश रहे वो शायद जमाने भर की खुशियाँ पाकर..
हम तो दुनिया का दर्द अपने दिल में छुपाये बैठे हैं..
उनकी राहों के उजाले कभी कम न हो जाए..
यही सोचकर आज हम अपना घर जलाए बैठे हैं..
जमाने को तो नफरत है वफ़ा के नाम से ही..
हम तो इन बेवफाओ से भी आस लगाए बैठे हैं..
लोगो ने जाने कितने दिल जलाए होंगे मुफलिसी में..
‘हम’ तो ख़ुद अपनी चिता को आग लगाए बैठे हैं..
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वक्त से डर के रहने मेँ समझदारी भी है ,
वो कल राजा था
आज भिखारी भी है,
औरोँ के काम आना है अच्छी बात है
मगर
इसमेँ छिपी एहसान की बिमारी भी है
वो धनवान है एक जवान बेटी का बाप
एक गरीब केँ दर का वो भिखारी भी है
बुरी नजर की आग लगाई तो खुद जलोगे
घर मेँ बहन और बेटी तुम्हारी भी है
वक्त की बाजी मेँ लगे हो खुद दांव पर
तुमसे बङा (NAME) कोई जुआरी भी है॥
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अपना तो
ये सोच कर ही
वक्त
गुज़र जाता है।
क्योँ दुर जाने के लिये
कोई करीब आता है॥
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चलती फिरती दुनिया ठहरी लगती है..
दिल पर जब लगती है चोट गहरी लगती है..
समय बङा बलवान है ,
हर जख्म को भर देता है..
पर
लफ्जोँ से मिली चोट हरदम हरी लगती है..
दुश्मनो की तलवार से आदमी बच सकता है..
लेकिन
दोस्ती की सुई बङी गहरी लगती है..
बुझ रहे हैँ एक एक कर के रस्मोँ के दीपक..
गांव के स्नेह की बाती अब शहरी लगती है..
जम जाती है बर्फ जब ठंडे रिश्तोँ पर ..
गर्मजोशी की तीखी धूप भी सुनहरी लगती है..
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सपनो में मेरे चुपके से आया है कोई..
धीमे से एक गीत गुनगुनाया है कोई..
मैंने तो आँखों को अपनी बंद रखा था..
फिर भी मेरे दिल में समाया है कोई..
लब पे मुस्कान है चेहरे पे ख़ुशी छाई है..
बन के खुशबू हर तरफ महकाया है कोई..
अब मुझे होता है जिन्दगी जीने का अहसास..
मेरे जीवन में बन के ख़ुशी छाया है कोई..
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शायद मैं जिंदगी की सहर ले के आ गया
कातिल को आज अपने ही घर ले के आ गया
ता_उमर ढूंढता रहा मंजिल मैं इश्क की
अंजाम ये के गरदे सफर ले के आ गया
नश्तर है मेरे हाथ में कन्धों पे मैकदा
लो मैं इलाज़-ए-दर्द-ए-जिगर ले के आ गया
फ़कीर सनम मैकदे में न आता मैं लौटकर
इक ज़ख्म भर गया था इधर ले के आ गया
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चुप की बांह मरोड़े कौन?
सन्नाटे को तोड़े कौन?
माना रेत में जल भी है...
रेत की देह निचोड़े कौन?
सागर सब हो जाएं मगर...
साथ नदी के दौड़े कौन?
मुझको अपना बतलाकर...
गम से रिश्ता जोड़े कौन?
भ्रम हैं, ख्वाब सलोने पर...
नींद से नाता तोड़े कौन??
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जो आपने न लिया हो, ऐसा कोई इम्तहान न रहा,
इंसान आखिर मोहब्बत में इंसान न रहा,
है कोई बस्ती, जहा से न उठा हो ज़नाज़ा दीवाने का,
आशिक की कुर्बत से महरूम कोई कब्रस्तान न रहा,
हाँ वो मोहब्बत ही है जो फैली हे ज़र्रे ज़र्रे में,
न हिन्दू बेदाग रहा, बाकी मुस्लमान न रहा,
जिसने भी कोशिश की इस महक को नापाक करने की,
इसी दुनिया में उसका कही नामो-निशान न रहा,
जिसे मिल गयी मोहब्बत वो बादशाह बन गया,
कुछ और पाने का उसके दिल को अरमान न रहा !
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Office मे ख़ुश रहो, घर में ख़ुश रहो...
आज पनीर नही है दाल में ही ख़ुश रहो...
आज gym जाने का समय नही, दो क़दम चल के ही ख़ुश रहो...
आज दोस्तो का साथ नही, TV देख के ही ख़ुश रहो...
घर जा नही सकते तो फ़ोन कर के ही ख़ुश रहो...
आज कोई नाराज़ है उसके इस अंदाज़ में भी ख़ुश रहो...
जिसे देख नही सकते उसकी आवाज़ में ही ख़ुश रहो...
जिसे पा नही सकते उसकी याद में ही ख़ुश रहो
Laptop ना मिला तो क्या, Desktop में ही ख़ुश रहो...
बीता हुआ कल जा चुका है उसकी मीठी यादें है उनमे ही ख़ुश रहो...
आने वाले पल का पता नही... सपनो में ही ख़ुश रहो...
हसते हसते ये पल बिताएँगे, आज में ही ख़ुश रहो
ज़िंदगी है छोटी, हर पल में ख़ुश रहो
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आंखों ने कैसे ख्वाब तराशे हैं इन दिनों
दिल पर अजीब रंग उतरते हैं इन दिनों
रख अपने पास अपने महो-मेह्र ऐ फ़लक
हम ख़ुद किसी की आँख के तारे हैं इन दिनों
दस्ते-सेहर ने मांग निकाली है बारहा
और शब ने आ के बाल संवारे हैं इन दिनों
इस इश्क ने हमें ही नहीं मोतदिल किया
उसकी भी खुश-मिज़ाजी के चर्चे हैं इन दिनों
इक खुश-गवार नींद पे हक़ बन गया मेरा
वो रतजगे इस आँख ने काटे हैं इन दिनों
वो क़ह्ते-हुस्न है के सभी खुश-जमाल लोग
लगता है कोहे-काफ पे रहते हैं इन दिनों
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मेरे लिए तेरी नज़रों की रौशनी है बुहत
के देख लूँ तुझे पल भर,मुझे यही है बुहत
ये और बात के चाहत के ज़ख्म गहरे हैं
तुझे भुलाने की कोशिश तो वरना की है बुहत
कुछ इस खता की सज़ा भी तो कम नही मिलती
ग़रीब-ए-शहर को इक जुर्म-एआगाही है बुहत
कहाँ से लाऊँ वो चेहरा, वो गुफ्तुगू, वो अदा
हज़ार हुस्न है गलियों में,आदमी है बुहत
कभी तो मुहलत-ए-नज़ारा, निक'हत गुजरां
लबों पे आग सुलगती है, तिशनगी है बुहत
किसी ने हँस के जो देखा तो हो गए उस के
के इस ज़माने में इतनी सी बात भी है बुहत
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बरसों के बाद देखा एक शख्स दिलरुबा सा
अब ज़हेन में नही है पर नाम था भला सा
अल्फ़ाज़ थे के जुगनू आवाज़ के सफ़र में
बन जाए जंगलों में जिस तरह रास्ता सा
ख्वाबों में ख्वाब उसके यादों में याद उसकी
नींदो में घुल गया हो जैसे के रतजगा सा
पहले भी लोग आए कितने ही ज़िंदगी में
वो हर तरह से लेकिन औरों से था जुड़ा सा
तेवर थे बेरूख़ी के अंदाज़ दोस्ती का
वो अजनबी था लेकिन लगता था आशना सा
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यूँ ना मिल मुझसे खफा हो जैसे
साथ चल मेरे मौज-ए-सबा हो जैसे
लोग यूँ देख कर हस देते है
तू मुझे भूल गया हो जैसे
इश्क को शर्क की हद तक ना बढ़ा
यूँ ना मिल हमसे खुदा हो जैसे
मौत भी आए तो इस नाज़ के साथ
मुझ पर एहसान किया हो जैसे
ऐसे अंजान बने बैठे हो
तुम को कुछ भी ना पता हो जैसे
हिचकियाँ रात को आती ही रही
तूने फिर याद किया हो जैसे
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दोस्ती करो तो धोखा मत देना,
दोस्तो को आंसू का तोफा मत देना,
दिल से रोये कोई तुम्हे याद कर के,
ऐसा किसी को मौका मत देना.
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इतने दोस्तो मे भी एक दोस्त की तलाश है मुझे
इतने अपनो मे भी एक अपने की प्यास है मुझे
छोड आता है हर कोइ समन्दर के बीच मुझे........
अब डूब रहा हु तो एक साहिल की तलाश है मुझे
लडना चाहता हु इन अन्धेरो के गमो से
बस एक शमा के उजाले की तलाश है मुझे
तग आ चुका हु इस बेवक्त की मौत से मै
अब एक हसीन ज़िंदगी की तलाश है मुझे
दीवना हु मै सब यही कह कर सताते है मुझे
जो मुझे समझ सके उस शख्श की तलाश है मुझे
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खुद को इस दिल में बसाने की इजाज़त दे दो,
मुझ को तुम अपना बनाने की इजाज़त दे दो,
तुम मेरी ज़िंदगी का एक हसीन लम्हा हो,
फूलों से खुद को सजाने की इजाज़त दे दो,
तुम्हारी रात सी ज़ुल्फों में चांद सा चेहरा,
ये जान फिर तुम लुटाने की इजाज़त दे दो,
नही शौक 'तुझे ' को भूल जाने का मगर,
मुझे ये दुनिया भूल जाने की इजाज़त दे दो...!!!
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यूँ ही उम्मीद दिलाते हैं ज़माने वाले,
कब पलटते हैं भला छोड़ के जाने वाले,
तू कभी देख झुलसते हुए सेहरा में दरख्त,
कैसे जलते हैं वफाओं को निभाने वाले,
उन से आती है तेरे लम्स की खुशबु अब तक,
ख़त निकाले हुए बैठा हूँ पुराने वाले,
आ कभी देख ज़रा उन की शबों में आकर,
कितना रोते हैं ज़माने को हंसाने वाले,
कुछ तो आँखों की ज़ुबानी भी कहे जाते हैं,
राज़ होते नहीं सब मुंह से बताने वाले,
आज न चाँद ना तारा है ना जुगनू कोई,
राब्ते ख़तम हुए उन से मिलाने वाले...!!!
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किसी के इतने पास न जा
के दूर जाना खौफ़ बन जाये
एक कदम पीछे देखने पर
सीधा रास्ता भी खाई नज़र आये
किसी को इतना अपना न बना
कि उसे खोने का डर लगा रहे
इसी डर के बीच एक दिन ऐसा न आये
तु पल पल खुद को ही खोने लगे
किसी के इतने सपने न देख
के काली रात भी रन्गीली लगे
आन्ख खुले तो बर्दाश्त न हो
जब सपना टूट टूट कर बिखरने लगे
किसी को इतना प्यार न कर
के बैठे बैठे आन्ख नम हो जाये
उसे गर मिले एक दर्द
इधर जिन्दगी के दो पल कम हो जाये
किसी के बारे मे इतना न सोच
कि सोच का मतलब ही वो बन जाये
भीड के बीच भी
लगे तन्हाई से जकडे गये
किसी को इतना याद न कर
कि जहा देखो वोही नज़र आये
राह देख देख कर कही ऐसा न हो
जिन्दगी पीछे छूट जाये
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क्यों बे खता को दी है सज़ा ये बता मुझे
कुछ तो करार, कुछ तो सकूं कर अता मुझे
इक आसमां के चाँद को छूने की चाह ने
अपनी ज़मीं से दूर बहुत कर दिया मुझे
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मुस्कुराते हुए हर लम्हा कटे जीवन का
कोई पल भी कभी खुशियों से न खाली आये
जिन्दगी में हो मुकद्दर का उजाला इतना
जब अंधेरे कभी घेरें तो दीवाली आये
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मंजिल की जुस्तजू में, भटकता रहा अलग
अपनों का साथ छोड़ के, जो चला अलग
किस किस का जिक्र कीजिये दुश्मन हज़ार हैं
रहबर, अलग फिराक में है,, रहनुमा अलग
नजदीक हैं, नज़र में हैं , ओझल हैं दिल में हैं
क्या दूर, क्या करीब, वो क्या, पास क्या अलग
मुश्किल हज़ार आईं,, मगर दूर हो गईं
माँ की दुआ ने की है हर इक बद-दुआ अलग
उनको जवाब दीजिये उनकी ज़बान में
लहजे से अपने कीजिए ये इल्तजा अलग
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अब भला आसमान तकने से क्या होगा
ज़मीन पर जॅमा दे पैरों को,
आप खुद हैं आपके वो अपने हैं,
थम के देख आज एकबार गैरो को,
होसला करके फाँद जा अब तो इनको,
कब तलक देखेगा इन लहरों को,
मॅन में ठाना है तो करके दिखा,
तोड़ दे आज लगे सारे पहरों को.
कब तलक चुपचाप सहेगा ज़ुल्म,
ज़रा ग़र्ज़ सुनादे बहरों को.
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अपना वजूद वक्त के सांचे में ढल गया
हैरत की बात है कि मैं कितना बदल गया
हालात ने बे फिक़री की चादर सी छीन ली
अहसास ने पुकारा तो मैं ख़ुद संभल गया
मुश्किल सफर की देख के तुम तो बदल गए
तनहा मैं कितनी दूर खुदारा निकल गया
क्या क्या शब् -ऐ-फिराक हुआ कुछ न पूछिये
बीते पलों की याद में एक एक पल गया
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छू सका न फितरत का फन ये आज भी मुझको
आयने में तकती है मेरी सादगी मुझको
ख़ुद पे रख नहीं पता मै कभी कभी काबू
याद आ ही जाता है वो कभी कभी मुझको
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कड़वे होते हैं,
मीठे होते हैं,
सचे होते हैं,
झूठे होते हैं,
ज़हरीले होते हैं
नशीले होते हैं,
जादू कर देते हैं,
पागल कर देते हैं,
कटीले होते हैं,
नुकीले होते हैं
कहीं मातम कर देते हैं,
कहीं खुशियाँ भर देते हैं,
सारा खेल ही लफ्जों का है...!!!
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असमा के तारे अक्सर पूछते है हमसे क्या
तुम्हे आज भी इंतज़ार है उसके लौट आने का.
और ये दिल मुस्कुरा के कहता है मुझे तो
अब तक यक़ीन ना हुआ उसके चले जाने का
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आप से मिलकर हम कुछ बदल से गये
शेर पडने लगे गुनगुनाने लगे
पहले मशूहर थी अपनी संजिदगी
अब तो लोगो से मिलने मिलाने लगे
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हर दुआ मे जैसे एक फरियाद छिपी हो
तन्हाई मे किसी के साथ छिपी हो
लम्हो मे किसी की याद छिपी हो
इस खामोशी मे जैसे कोई बात छिपी हो
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जब थी तन्हा बैठे हम
ख्याल तेरा ही जहा मे आया
अब इस से बढकर वफा की हद क्या होगी
कि हर ज़रे मे मैने अक्स तेरा पाया
जब कभी चली बात तेरी ए दोस्त
जब्त आंसू कर गये हम लेकिन दिल को रोता पाया
कहते है वक़्त हर ज़ख्म को भर देता है लेकिन
जाने क्यो मैने अपने ज़ख्म को हर वक़्त हारा पाया
तुम तो चल दिये छोड कर तन्हा मुझको लेकिन
आंखो को हर पल तेरे इन्तेज़ार मे बिछा पाया
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तन्हा ना कोई हो ये दुआ है मेरी
रुसवा ना कोई हो ये दुआ है मेरी
जैसा मुझे दीवाना किया उल्फत ने
ऐसा ना कोई हो ये दुआ है मेरी
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कौन कहता है की आपसे हमारी जुदाई होगी
ये अफवाह किसी दुश्मन ने फैलाई होगी
शाम से रहेंगे "जान" आपके दिल मे हम
इतने दिनो मे हमने कुछ तो जगह बनाई होगी
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किस्मत रुठ गयी
दिल के तार टूट गये
आप भी रूठ गये
सपने भी टूट गये
आंखो मे थे सिर्फ दो आंसू
जब याद आयी आपकी तो वो भी लूट गये
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अपने होठो से मेरे गीत लगा कर देखो
मेरे नगमे है तुम्हारे ही लिये गा कर देखो
मेरे दिल की हर बात सुनाई देगी तुमको
मेरी तस्वीर को कभी सीने से लगा कर देखो
हिज़्र मे कैसे बसर होते है दिन रात मेरे
तुम कभी मेरी तन्हाई मे आकर देखो
गुल की चाहत मे मिले ज़ख्म ही सदा
अब के दिल को किसी पत्थर से लगा कर देखो
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जैसे ला देता है बहार रौनक चमन मे
वैसे लाये ये दिन खुशिया हज़ार तेरे दामन मे
बुरी नज़र ना लग जाये मुझे तेरी खुशियो के चिलमन से
तू हमेशा रहे शामिल बे-गमो के अन्जुमन मे
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यूं मिले के मुलाकात न हो सकी ,
होट खुले मगर कोई बात न हो सकी,
मेरी खामोश निगाहें हर बात कह गई ,
और उनको शिकायत है के बात न हो सकी
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वक़्त नूर को बे नूर कर देता है
छोटे से ज़ख्म को नसूर कर देता है
कौन चाहता है अपनो से दूर होना
पर वक़्त सबको मजबूर कर देता है
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उनका यूँ रातो को ख्वाबो मे आना
अच्छा लगता है
उनका यूँ हमको हर रोज़ सताना
अच्छा लगता है
कभी मिलती है नज़र
और कभी है नज़र
और कभी झुक जाती है
उनका यूँ मिला के नज़र
नज़र चुराना अच्छा लगता है
खुलकर मिलने मे हमसे वो
ज़रा शरमाते है
उनका यूँ हमसे मिलके शरमाना
अच्छा लगता है
कभी कभी वो गैरो से भी
खुलकर बातें करते है
उनका यूँ दिललगी से दिल को जलाना
अच्छा लगता है
उनके लब खुल जाये तो
फूलो की बारिश होती है
उनका यूँ हंसके हमको बुलाना
अच्छा लगता है
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वक़्त थोडा है पास मेरे
पर बहुत कुछ अभी करना बाकी है
वो जख्म जो अपनो ने दिये उसे अभी भरना बाकी है
तेरी मोहब्बत की आदत पड गयी है मुझे
कुछ देर तेरे साथ चलना बाकी है
समशान मे जलता छोडकर मत जाना वरना रुह कहेगी
रुक जा अभी इसका दिल जलना बाकी है
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मेरी ज़िन्दगी, मेरी जान-ए-जान
मुझे ले चलो कभी उस जहाँ
जहाँ तू ही मेरा नसीब हो
जहाँ दिल से तू ही क़रीब हो
जहाँ गम कभी ना आ सके
जहाँ नफरते ना सटा सके
जहाँ क़रब हो, जहाँ हो खुशी
जहाँ चाहती हो हमे ज़िन्दगी
जहाँ दिल मेरा ना उदास हो
जहाँ हर जगह तेरी आस हो
मेरी ज़िन्दगी मेरी जान-ए-जा
मुझे ले चलो कभी उस जहाँ
**************************************************
नगमो की बारिशो मे कही भीगने चले
मौसम की आरज़ू को ना ठुकराये
रिश्तो को भूल जाना तो आसान है मगर
पहले खुद अपने-आप को समझाये
मै प्यार तेरा हूँ "जान" ये याद रहे
इसलिये कभी-कभी मेरे ही शेर मुझको सुना जायीये
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सोचा था हमने भुल जायेंगे तुम को
फिर कभी याद ना आयेंगे तुम को
दिल तो मासूम है चल पडा मोहब्बत की राह पर
समझ ना पाया तुम जैसे बेवफा को
शिकवा क्या करे तुम से हम संगदिली का
शिकस्त तो दी है हमारी सादगी ने हम को
*********************************************
रब से आपकी ख्वाहिश मांगते है
दुआ मे आपकी खुशी मांगते है
फिर सोचते है और क्या मांगे रब से
जिसकी आप दिन रात दुआ मांगते है
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जो बनाना है इसी वक़्त बना लो मुझको
अब किसी और ज़माने पे ना टालो मुझको
किसी झूमर की तरह खुद पे सजा लो मुझको
ज़िन्दगी अपनी किसी तरहा बना लो मुझको
अपनी आगोश के तकिये पे मेरा सर रख दो
उंगलियाँ फेर के बालो मे सुला दो मुझको
मुझको तन्हाई की दुनियाँ मे ना रखो जाना
अपने आईने का इक अक्स बना लो मुझको
दुश्मनी पर उतर आये है, दुनिया वाले
अपनी पलको की पनाहो मे छुपा लो मुझको
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रुत आये जो बारिश की
कितना प्यारा लगता है,
ये मौसम भीगा-भीगा सा
कितना न्यारा लगता है,
संग तेरे सजना मुझको
भीगना अच्छा लगता है,
हो गर्मी का या पतझड़ का
सब बारिश का सा लगता है,
जब पास मेरे तुम होते हो
हर मौसम अच्छा लगता है,
तुझ संग खेलू बूंदों से मैं
हल्की-हल्की सी बारिश में,
लेकर हाथों में हाथ झूमना
कितना सुहाना लगता है,
भीगना रिम-झिम बारिश में
कितना प्यारा लगता है,
ये मौसम भीगा-भीगा सा
सबसे न्यारा लगता है,
रुत आये जो बारिश की
मुझे सबसे प्यारा लगता है
****************************************************8
इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
*************************************************
उलझनों में जकडा
कभी इधर खीचता कभी उधर
मंज़िल मालूम है लेकिन
रास्तों से अनजान हूँ
प्यास से तिलमिलाता
कभी इधर भटकता कभी उधर
कुआ मालूम है लेकिन
रास्तों से अनजान हूँ
परेशानियों से छिपकर
कभी इधर ठोकर खाता कभी उधर
ऊपाय मालूम है लेकिन
रास्तों से अनजान हूँ
मझधार में फँस्कर
कभी इधर गोता खाता कभी उधर
किनारा मालूम है लेकिन
रास्तों से अनजान हूँ
दिल के हाथों चोट खाकर
कभी इधर सीसकता कभी उधर
मेह्खाना मालूम है लेकिन
रास्तों से अनजान हूँ
गगन में उड़ता
कभी इधर सरसराता कभी उधर
क्षितिज मालूम है लेकिन
रास्तों से अनजान हूँ
प्यार के गलियारों में
कभी इधर खोजता कभी उधर
ठिकाना मालूम है लेकिन
रास्तों से अनजान हूँ
मौत के सागर में
कभी इधर डूबता कभी उधर
अंजाम मालूम है लेकिन
रास्तों से अनजान हू
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हर तरफ खामोशी का साया है ,
जिंदगी में प्यार किसने पाया है ,
हम तो झूमते है उसकी यादों में ,
और लोग कहेते है .........
देखो आज फिर पी कर आया है
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हम नहीं जी पायेंगे फिर सनम तुमसे उस जुदाई के बाद|
दिल रोयेगा बहुत ये संभल नहीं पायेगा फिर कभी भी,
नहीं थमेगी इन अश्को की बरसात उस जुदाई के बाद|
इस दिल में बसे हो सिर्फ तुम ही नहीं कोई तुम्हारे सिवा,
मिटा देंगे खुद का नामोनिशां भी हम उस जुदाई के बाद|
दिल को रहती है आस यही हम मिले हर मुलाक़ात के बाद,
ना आये अब जुदाई की रात कभी किसी मुलाक़ात के बाद
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मिलते हो मुझसे बिछड़ जाते हो हर मुलाक़ात के बाद,
खोये रहते हैं सिर्फ तुम में ही हम हर मुलाक़ात के बाद|
मिलती है ख़ुशी तुमसे हमें उस हर मुलाक़ात के बाद,
दिल चाहता नहीं बिछड़ना कभी किसी मुलाक़ात के बाद|
वक़्त ना आये कभी ऐसा की जुदा तुम हो जाओ हमसे,
हम नहीं जी पायेंगे फिर सनम तुमसे उस जुदाई के बाद|
दिल रोयेगा बहुत ये संभल नहीं पायेगा फिर कभी भी,
नहीं थमेगी इन अश्को की बरसात उस जुदाई के बाद|
इस दिल में बसे हो सिर्फ तुम ही नहीं कोई तुम्हारे सिवा,
मिटा देंगे खुद का नामोनिशां भी हम उस जुदाई के बाद|
दिल को रहती है आस यही हम मिले हर मुलाक़ात के बाद,
ना आये अब जुदाई की रात कभी किसी मुलाक़ात के बाद
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अभी जो साथ हूँ तुम्हारे तो एहसास नहीं तुमको
चली जो जाऊं मैं दूर तुमसे कल... तो क्या होगा
अभी तो दिये जाते हो तुम दर्द मुझको अनजाने ही
मै खुद बन जाऊ जो एक दर्द कल... तो क्या होगा
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कभी मुझ से खफा होकर, दूर तुम ना हो जाना
मुझे मेरी मोहब्बत में.. दगा तुम ना दे जाना ,
तुमही ने तो सिखाई है, मुहब्बत की ये परिभाषा
कभी मुझ से खफा होकर.. मुझे तुम भूल ना जाना,
मेरे दिल में बसाई है, जो तुमने प्यार की दुनिया
लगा के चोट दिल पे तुम.. दर्द सनम ना दे जाना,
मोहब्बत के नसीब में अक्सर, जुदा होना ही होता है
मेरे महबूब मगर मुझको.. ना तनहा छोड़ के जाना,
तुमही हो आस जीने की, नहीं तुम बिन कोई मेरा
मेरी इस आस को हमदम.. कभी ना तोड़ के जाना,
तुम मेरी मोहब्बत हो, मैं तुम बिन जी नहीं सकती
तुम मेरी मोहब्बत को.. कभी रुस्वां ना कर जाना |
"" बड़ी संगदिल है ये दुनिया.. ना तनहा मुझको जीने दे.. ना संग तुम्हारे जीने दे
मुझे मेरी मोहब्बत की.. तड़पने की.. रोने की.. सज़ा हमदम ना दे जाना, मुझे तुम भूल ना जाना *****************************************************
काश ये दिन आया ना होता
ज़िन्दगी ने यू अकेले छोडा ना होता
सब कुछ पाकर भी कुछ अधुरा सा है
काश किसी दोस्त ने यू छोडा ना होता
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ज़िन्दगी की हर खुशी मुझे हासिल होगी
जहाँ रहुंगा मे वही मेरी मन्ज़िल होगी
अंदर से फौलाद सा हो गया हूँ मै
गिनुंगा रास्ते के कंकर कितनी मुशिकल होगी
नही मिले तो चैन से सौ जाता हूँ
मै समझता हूँ चीज़ वो संगदिल होगी
अपनी मन्ज़िल का रास्ता पूछते है लोग
मेरे हाथ मे जलती हुई कन्दिल होगी
हौसले और हिम्मत को इरादे मजबूत करे
वरना सबकी नज़रे बुजदिल होगी
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तन्हाई रखना अपना इस कदर
कि हवा भी आपको छू ना सके
प्यार करना इतना की कोई दुर हो ना सके
तन्हाई मे अगर कोई बैठा हो तो
सोच कर आपको कोई रो ना सके
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मौसम को देखो कितना हसीन है
ठंडी हवाये और भीगी ज़मीन है
याद आ रही है आपकी कुछ बाते
आप भी याद कर रहे होंगे इतना यकीन है
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हम तेरा साथ निभायेंग़े जब तक जान मे जान है
हम तेरे साथ चलेंग़े जब तक जान मे जान है
भले मेरी जान मेरे साथ ना रहे
पर मै मेरी जान के साथ हूँ
जब तक मेरी जान मे जान है
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हमेशा चलता ही रहता है चलता जाएगा ..... ये वक़्त
कभी मीठी यादें कभी सिर्फ़ बातें बनके याद आएगा ....ये वक़्त
कभी किसी को माँ की लोरियों में तो कभी गाँव की गलियों में
कभी निभाए हुए दोस्ती के वादों में तो कभी भूली सखियों में
छोटी छोटी भूलें जिन्हें हम अब तक नही भूलें
बचपन के वो पल जो अब भी कभी कभी हमे छूलें
उन लम्हों को हमेशा वैसे ही जिंदा रखेगा.........ये वक़्त
ये वक़्त ....................ये वक़्त
वक़्त.............
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ये वक़्त ही तो है जो हमे आप जैसे दोस्तों से भी मिलाता है
वरना जो बिछड़ जाता है वो कहाँ लौट के आता है
बस इसके हर पल को जीने की तमन्ना है
दोस्त गर सब साथ हों तो ये भी ख़ुशी मनाता है
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वक़्त से बढ़कर कहाँ कुछ होता है
ये जैसा चाहता है वैसा ही होता है
ये साथ जिसके सितारें उसके बुलंदी पर
जो रोता है ये उससे भागा करता है
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वक़्त की आगोश में कोई नही जाता इसने ख़ुद ही सबको समेट रखा है
लाखों यादें हजारों कसमों को भुला और कुछ को जिंदा रखा है
जो मिला बिछुड़के उससे फिर से अलग कर देता है
जो मिला ही नही कभी उसे भी पर अपने दिल में इसने सहेज रखा है
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कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है !
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है !!
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है !
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है !!
मोहब्बत एक एहसासों की पावन सी कहानी है !
कभी कबीरा दीवाना था कभी मीरा दीवानी है !!
यहाँ सब लोग कहते हैं, मेरी आंखों में आँसू हैं !
जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है !!
समंदर पीर का है अन्दर, लेकिन रो नही सकता !
यह आँसू प्यार का मोती है, इसको खो नही सकता !!
मेरी चाहत को दुल्हन बना लेना, मगर सुन ले !
जो मेरा हो नही पाया, वो तेरा हो नही सकता !!
भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हँगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पला बैठा तो हँगामा,
अभी तक डूब कर सुनते थे हम किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हक़ीक़त में बदल बैठा तो हँगामा !!!*******Dr. Kumar Vishwas
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तू दुर है मुझसे और पास भी है
तेरी कमी का एहसास भी है
दोस्त तो हमारे लाखो है इस जहाँ मे
पर तू प्यारा भी है और खास भी है
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ए खुदा मेरे मुक़द्दर में ये तूने क्या लिखा
रातों की काली स्याही आँखो का जागना लिखा
ये तमन्ना थी मेरी चाँद-तारे हो मेरे
होश में आने से पहले टूटते हैं सपने मेरे
अस्कों की स्याही से मेरे प्यार का किस्सा लिखा
ए खुदा मेरे मुक़द्दर में ये तूने क्या लिखा
ज़ख्म सीने में दिए और हौसला देखा नही
जीते जी मरना पड़ा क्या तूने ये सोचा नही
थोड़ी सी ज़मीन का हिस्सा नाम मेरे क्यू लिखा
ए खुदा मेरे मुक़द्दर में ये तूने क्या लिखा
बाग़-ए-दुनिया क्यू मुझे तूने कभी बख़्शी नही
खुशियों का कोई पड़ाव मेरे रास्ते में नही
ईद में ना, ना दीवाली का कोई किस्सा लिखा
ए खुदा मेरे मुक़द्दर में ये तूने क्या लिखा
रातों की काली स्याही आँखो का जागना लिखा
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हम भी दरिया हैं, हमें अपना हुनर मालूम है,
जिस तरफ़ भी चल पड़ेगे, रास्ता हो जाएगा.
कितना सच्चाई से, मुझसे ज़िंदगी ने कह दिया,
तू नहीं मेरा तो कोई, दूसरा हो जाएगा.
मैं खूदा का नाम लेकर, पी रहा हूँ दोस्तो,
ज़हर भी इसमें अगर होगा, दवा हो जाएगा.
सब उसी के हैं, हवा, ख़ुश्बु, ज़मीनो-आस्माँ,
मैं जहाँ भी जाऊँगा, उसको पता हो जाएगा.
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आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो
आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना हो
बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना हो
आज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो
आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना हो
क्या पता
कल हो ना हो
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मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है......
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लोग मोहब्बत को खुदा का नाम देते है,
कोई करता है तो इल्जाम देते है।
कहते है पत्थर दिल रोया नही करते,
और पत्थर के रोने को झरने का नाम देते है।
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मुस्कराना ही ख़ुशी नहीं होती,
उम्र बिताना ही ज़िन्दगी नहीं होती,
दोस्त को रोज याद करना पड़ता है,
क्योकि दोस्त कहना ही दोस्ती नहीं होती
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वो दर्द ही क्या जो आँखों से बह जाए,
वो खुशी ही क्या जो होठों पे रह जाए,
कभी तो समझो मेरी खामोशी को,
वो बात ही क्या जो लफ्ज़ आसानी से कह जायें
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दिल मे मेरे, बसने वाला किसी दोस्त का प्यार चाहिए,
ना दुआ, ना खुदा, ना हाथों मे कोई तलवार चाहिए,
मुसीबत मे किसी एक प्यारे साथी का हाथों मे हाथ चाहिए,
कहूँ ना मै कुछ, समझ जाए वो सब कुछ,
दिल मे उस के, अपने लिए ऐसे जज़्बात चाहिए,
उस दोस्त के चोट लगने पर हम भी दो आँसू बहाने का हक़ रखें,
और हमारे उन आँसुओं को पोंछने वाला उसी का रूमाल चाहिए,
उलझ सी जाती है ज़िन्दगी की किश्ती दुनिया की बीच मँझदार मे,
इस भँवर से पार उतारने के लिए किसी के नाम की पतवार चाहिए,
अकेले कोई भी सफर काटना मुश्किल हो जाता है,
मुझे भी इस लम्बे रास्ते पर एक अदद हमसफर चाहिए,
पर कोई, जो कहे सच्चे मन से अपना दोस्त, ऐसा एक दोस्त चाहिए
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अक्सर रिश्तों को रोते हुए देखा है,
अपनों की ही बाँहो में मरते हुए देखा है
टूटते, बिखरते, सिसकते, कसकते
रिश्तों का इतिहास,
दिल पे लिखा है बेहिसाब!
प्यार की आँच में पक कर पक्के होते जो,
वे कब कौन सी आग में झुलसते चले जाते हैं,
झुलसते चले जाते हैं और राख हो जाते हैं!
क्या वे नियति से नियत घड़ियाँ लिखा कर लाते हैं?
कौन सी कमी कहाँ रह जाती है
कि वे अस्तित्वहीन हो जाते हैं,
या एक अरसे की पूर्ण जिन्दगी जी कर,
वे अपने अन्तिम मुकाम पर पहुँच जाते हैं!
मैंने देखे हैं कुछ रिश्ते धन-दौलत पे टिके होते हैं,
कुछ चालबाजों से लुटे होते हैं-गहरा धोखा खाए होते हैं
कुछ आँसुओं से खारे और नम हुए होते हैं,
कुछ रिश्ते अभावों में पले होते हैं-
पर भावों से भरे होते है! बड़े ही खरे होते हैं !
कुछ रिश्ते, रिश्तों की कब्र पर बने होते हैं,
जो कभी पनपते नहीं, बहुत समय तक जीते नहीं
दुर्भाग्य और दुखों के तूफान से बचते नहीं!
स्वार्थ पर बनें रिश्ते बुलबुले की तरह उठते हैं
कुछ देर बने रहते हैं और गायब हो जाते हैं;
कुछ रिश्ते दूरियों में ओझल हो जाते हैं,
जाने वाले के साथ दूर चले जाते हैं !
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एक रात धड़कन ने आँख से पूछा
तू दोस्ती में इतनी क्यों खोयी है
तब दील से आवाज़ आई
दोस्तों ने ही दी है खुसिया सारी
वरना प्यार करके तो हर आँख रोई है
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सूख जाते हैं लब, लफ्ज़ मिलते नही
होता नही हम से इश्क़ बयान
उन्हे कैसे बताऊं दिल की लगी
कैसे सिखाऊँ आँखों की ज़ुबान
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रहो जमीं पे, मगर आसमां का ख्वाब रखो,
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो.
खड़े न हो सको इतना न सर झुकाओ कभी,
तुम अपने हाथ में किरदार की किताब रखो.
उभर रहा जो सूरज, तो धूप निकलेगी
उजालों में रहो, मत धुंध का हिसाब रखो.
मिले तो ऐसे कि कोई न भूल पाये तुम्हें
महक वंफा की रखो और बेहिसाब रखो.
अक्लमंदों में रहो तो अक्लमंदों की तरह
और नादानों में रहना हो रहो नादान से.
वो जो कल था और अपना भी नहीं था दोस्तों
आज को लेकिन सजा लो एक नयी पहचान से.
रहो जमीं पे, मगर आसमां का ख्वाब रखो,
तुम अपनी सोच को हर वक्त लाजवाब रखो
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तुम से मिलने को जी चाहता है
रात के इन अंधेरो मे अक्सर
तेरी यादो को दिल मे सजाऐ
ना जाने बहाऐ कितने आंसू
उन आंसूओ मे खुद अब बहकर
तुम से मिलने को जी चाहता है
तन्हाइयो से तंग आ गये है
रोशनी से हम घबरा गये है
तेरी चाहत के दीप जलाकर
फिर से तेरे करीब आकर
तुमसे मिलने को जी चाहता है
अब छोडो पुराने तुम ये किस्से
क्या क्या कहा किस किस से
हाथो को हाथो मे थामे
आंखो को आंखो मे डाले
तुम से मिलने को जी चाहता है
आओ हम जोडे वफ़ाऐं
भुला दें जो हुई थी खताऐं
फिर से नई दुनियां बसाकर
चलो फिर साथ गुनगुनाऐ
तुम से मिलने को दिल चाहता है
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मत कराओ इंतज़ार इतना कि वक़्त के फैसले पर अफ़सोस हो जाये
क्या पता कल तुम लौटकर आओ और हम खामोश हो जाएँ
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रोया है दिल आँख मुस्कुराई है, यूँ किसी से हमने वफ़ा निभाई है
जो न एक लम्हा कभी दे पाए, उनकी खातिर हमने बहुत खुशिया गवाई है
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रास्ते खुद तबाही के निकाले हमने
दिल कर दिया किसी पत्थर के हवाले हमने
ना जानते थे क्या रस्क है मोहब्बत
अपना ही घर फूँक देखे उजाले हमने
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बदलने को तो इन आँखों के मंजर कम नहीं बदले !
तुम्हारी याद के मौसम हमारे गम नहीं बदले !!
तुम अगले जनम में मिलोगी हमसे तब तो मानोगी !
ज़माने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले !!
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तुम्हारे पास हूँ लकिन जो दूरी है समझता हूँ !
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है समझता हूँ !!
तुम्हे मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन !
तुम्ही को भूलना सबसे ज़रूरी है समझता हूँ
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ऐसा वादा न कर मुझसे की तू निभा न सके,
इतना दूर न जा की कभी मुझ पे हक़ जता न सके,
गलत्फमियों से न लगा नफरत की आग,
की चाह कर भी तू बुझा न सके,
न खीच दिल के आईने पे कुछ ऐसी रेखाएं जो चेहरा बदल दे,
की अपनी ही सूरत तू धडकनों को कभी दिखा न सके,
न बांध ज़माने के रिश्तों में मासूम प्यार को तू आज,
की कल खुदा सी मोहब्बत के जस्बातों को तू कुछ समझा न सके,
है दम तेरी नफरत में तो छोड़ दे तस्बूर में भी मेरा ख्याल,
कहीं ऐसा न हो एक पल के लिए भी तेरी साँसे मुझे भुला न सके,
नामो निशा भी न छोड़ तू मेरी किसी निशानी का अपने पास,
लेकिन वक़्त के हाथ तेरे चेहरे से मेरे प्यार का निशा मिटा न सके,
सजा दिया नए रिश्तो की रौशनी ने मन तेरा जीवन,
पर यादों के लम्हों की दाल से ये मेरा नाम हाथ न सके,
इंसा से लेके खुदा तक सबने जिसे मिटाना चाहा
ऐसी मोहब्बत को भुलाने के लिए हम खुद को मन न सके,
न कर इतना शर्मिंदा मेरी मोहब्बत को आज,
की कल तू इस इश्क को अपने दिलके महल में सजा न सके...
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मोहब्बत का इरादा अब बदल जाना भी मुश्िकल है,
तुझे खोना भी मुश्िकल है, तुझे पाना भी मुश्िकल है.
जरा सी बात पर आंखें िभगो के बैठ जाते हो,
तुझे अब अपने िदल का हाल बताना भी मुश्िकल है,
उदासी तेरे चहरे पे गवारा भी नहीं लेिकन,
तेरी खाितर िसतारेतोड़ कर लाना भी मुश्िकल है,
यहाँ लोगों ने खुद पे परदे इतने डाल रखे हैं,
िकस के िदल में क्या है नज़र आना भी मुश्िकल है,
तुझे िज़न्दगी भर याद रखने की कसम तो नहीं ली,
पर एक पल के िलए तुझे भुलाना भी मुश्िकल है...
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आँखों के इंतज़ार का दे कर हुनर चला गया,
चाहा था एक शख़्स को जाने किधर चला गया।
दिन की वो महफिलें गईं, रातों के रतजगे गए
कोई समेट कर मेरे शाम-ओ-सहर चला गया।
झोंका है एक बहार का रंग-ए-ख़याल यार भी,
हर-सू बिखर-बिखर गई ख़ुशबू जिधर चला गया।
उसके ही दम से दिल में आज धूप भी चाँदनी भी है,
देके वो अपनी याद के शम्स-ओ-क़मर चला गया
कूचा-ब-कूचा दर-ब-दर कब से भटक रहा है दिल,
हमको भुला के राह वो अपनी डगर चला गया।
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ढूंड़ता है क्यूं नादान कहीं दूर तू उसे
खोया ही कब था जो अब खोज के लाएगा तू उसे
न होश गवां अपने उसकी तलाश में
अपने ही गिरेबान में पायेगा तू उसे
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दर्द शब्द खुद मे इतना दर्द पूर्ण है की क्या कहु ........
न जाने कहाँ से ज़िन्दगी में आ जाता है दर्द
क्यों मन को इस कदर दुखाता है दर्द
आँखों से लहू बन कर बहता है दर्द
पन्नो पर शब्द बन कर बिखर जाता है दर्द
दिल को बहुत दुखाता है यह दर्द
बेगाने क्या अपने भी दे जाते है दर्द
हंसी में भी दबे पाँव आ जाता है दर्द
हर पल अपने होने का एहसास दिलाता है दर्द
सांसो मे क्या अब तो dharkano मे भी बस गया है दर्द
न जाने कहाँ से ज़िन्दगी में आ जाता है दर्द