आशिक जलाए नही द्फनाय़े जाते हैं,
आता नही हमको राहें वफा दामन बचाना,
जो गिर गया उसे और क्यों गिराते हो,
गुज़री है रात आधी सब लोग सो रहे हैं,
गुज़रे है आज इश्क के उस मुकाम से,
जिस पेड के पत्ते होते है वही पत्ते सूखते है,
जब खामोशी होती है नज़र से काम होता है,
तुम क्या मिले कि फैले हुए गम सिमट गये,
वो फूल जिस पर ज्यादा निखार होते हैं,
पी लिया करते हैं जीने की तमना मे कभी,
मै जिस के हाथ मे एक फूल दे कर आया था,
आपको मुबारक हो इशरते ज़माने की,
कब तक तू तरसेगी तरसाएगी मुझ को,
अगर खुश हो तुम दिखाकर अश्क मेरी आँखों में,
दिल से कहते हैं मुस्कराना छोड़ देंगे,
उनका बिना जिनगी उदास लागेला,
कईसे बुझायीं इ छतिया के अगिया ,
उनका बिना जियरा के पियास लागेला.
रौवा से का छुपाईं रौवा हईं संघतिया,
उनका बिना जिनगी उजाड़ लागेला,
सुनीं सुनीं रउवो सुनीं इ बिरहा के बतिया,
उनका बिना इ संसार पहाड़ लागेला.
अयीनी कमाए विदेसी में रुपिया,
उनका बिना रुपिया जंजाल लागेला,
कईसे कंही, केह्से कंही मनवा के बतिया..
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