जो भर दे वो अक्सीर कहां?
मेरे लावारिस अश्कों को,
जो थामे वो मनमीत कहां?
मेरे अंधियारे आंगन में,
जो दीया जले तकदीर कहां ?
मेरे तन्हा से आलम में,
जो रंग भरे वो यार कहां?
आहें भर भर के हार गये,
अब उनमें भी तासीर कहां?
जब नायक ही खलनायक हों
तब मिलता है इंसाफ़ कहां?
ख्वाबों के महल सब टूट गये,
बेजान हुए अब जीएं कहां?
आंखों से अश्क हुए ओझल,
पर दर्दे जिगर थमता है कहां?
ये दुनिया जंगल पत्थर की,
खिलना मुरझाना जाने कहां?
शीशे का समझ कर जामे जिगर,
यूं मय को पीया और बहक गया,
हम टुकड़े टुकड़े चुनते रहे,
जो टूट गया सो टूट गया
गीत मिले ना साज रहे,
हो मुग्ध मधुर संगीत कहां?
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